बुधवार, 29 अगस्त 2012

***कवि वंदना*** 

* चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥2॥

भावार्थ:-मैं उन सब (श्रेष्ठ कवियों) के चरणकमलों में प्रणाम करता हूँ, वे मेरे सब मनोरथों को पूरा करें। कलियुग के भी उन कवियों को मैं प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने श्री रघुनाथजी के गुण समूहों का वर्णन किया है
***गुरु वंदना***

* बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥

भावार्थ:-मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं

बुधवार, 6 जून 2012

“अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात उसे तुम से मिलाने में लग जाती है” 


*मित्रो ये वो सिद्धांत है जो कहता है कि आपकी सोच हकीकत बनती है. अगर आप सोचते हैं की आपके पास बहुत पैसा है तो, आपके पास बहुत पैसा हो जाता है, यदि आप सोचते हैं कि मैं हमेशा गरीब रहूँगा, तो ये भी सच हो जाता है, शायद सुनने में अजीब लगे पर ये एक सार्वभौमिक सत्य है. यानि हम अपनी सोच के दम पर जो चाहे वो बन सकते हैं. और ये कोई नयी खोज नहीं है भगवान् बुद्ध ने भी कहा है "हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है" स्वामी विवेकानंद जी ने भी यही बात इन शब्दों में कही है "हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है" इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. 
क्योकि आपकी प्रबल सोच हकीक़त बनने का कोई ना कोई रास्ता निकाल लेती है .


-धन्यवाद
***सार्थक वाणी***प्रेम एक शब्द है 

प्रेम एक शब्द है 
उस दिव्य अनुभूति का इशारा मात्र,
जैसे शरीर हो और उस की छाया प्रेम, 
इसलिए प्रेमी जब भी कहे में तुम्हे प्रेम करता हूँ, 
यह कहना सिर्फ एक मात्रा होती है, 
क्योकि प्रेम की तो मनस्थिति होती है, 
उसकी कोई चर्चा नहीं होती वह मूक है लेकिन ज्यादा प्रखर ज्यादा समर्पित एवं दिव्य है 
इसलिए परमात्मा को प्रेम भी कहते हैं !

*मित्रो आज की "सार्थक वाणी" में हमारे एक मित्र --विकाश चौधरी ने प्रेम के ऊपर यह बात कही है, कृपया अपने comments के माध्यम से बताएं की ये POST आपको कैसी लगी !

—धन्यवाद