***"सार्थक" वाणी***
एक दिन एक गरीब को दस रुपये मिले, वो सारा दिन सोचने लगा की इस से क्या ख़रीदा जाए...??
सारा दिन सोचने में गुज़र गया, उस ने शाम को वो दस रुपये फैंक दिये और कहने लगा-
ऐ मालिक...
दस रुपये की खातिर मैंने तुझको सारा दिन भुला दिया, लेकिन जिन के पास लाखों करोडों रुपये जमा हैं वो कैसे तुझ को याद करते होंगे...??
!! जय श्री राधे कृष्णा !!
***"सार्थक" वाणी*** धन्यवाद
वेदों के अनुसार ब्रह्म (ईश्वर) ही सत्य है। परमेश्वर से इस ब्रह्मांड की रचना हुई। इस ब्रह्मांड में सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियां रहती हैं। वैदिक ऋषि उस परमेश्वर सहित सकारात्मक शक्तियों की प्रार्थना गाते थे और उनसे ही सब कुछ मांगते थे। उनकी प्रार्थना की शुरुआत ही इस धन्यवाद से होती थी कि आपने हमें अब तक जो दिया है उसके लिए धन्यवाद। मांग से महत्वपूर्ण है- धन्यवाद।
* धन्यवाद देने की विधि धन्यवाद तत्काल देना चाहिए। कृत्य एवं आभार ज्ञापन के बीच दूर
ी नहीं होनी चाहिए। एक तुरन्त कहा गया धन्यवाद एक सप्ताह देरी से भेजे गये दो पन्नों के पत्र से अधिक प्रभावशाली होता है। समय पर दिये गये धन्यवाद की कद्र होती है।
***सार्थक वाणी***प्रेम एक शब्द है
प्रेम एक शब्द है
उस दिव्य अनुभूति का इशारा मात्र,
जैसे शरीर हो और उस की छाया प्रेम,
इसलिए प्रेमी जब भी कहे में तुम्हे प्रेम करता हूँ,
यह कहना सिर्फ एक मात्रा होती है,
क्योकि प्रेम की तो मनस्थिति होती है,
उसकी कोई चर्चा नहीं होती वह मूक है लेकिन ज्यादा प्रखर ज्यादा समर्पित एवं दिव्य है
इसलिए परमात्मा को प्रेम भी कहते हैं !
—धन्यवाद
***सार्थक वाणी***
मित्रो: समाज में जितनी भी प्रतिकूलताएं व प्रकृति में विकृतियां हैं, उन सबका मूल कारण संयम का न होना है। ज्यादा से ज्यादा पाने की इच्छा ने असंतुलन को जन्म दिया है। इसका एकमात्र समाधान है कि संयमित जीवन जिया जाए।
जैसा कि मिट्टी का घड़ा आकाश की ओर पीठ, धरती की ओर मुख करके पड़ा रहे तो चाहे कितनी भी वर्षा हो जाए, वह घड़ा नहीं भरेगा। उसी प्रकार क्रोध कामना की कोख से उपजता है। यदि कोई कामना अधूरी रहे तो व्यक्ति आपा खो बैठता है। इसलिए मनुष्य को जीवन में संतुलन बनाए रखना बहुत आवश्यक है।
इसलिए मनुष्य आदर के प्रति अत्यधिक आसक्त होता है। वह सदैव आदर चाहता है। इसका कारण यह है कि उसके भीतर ईश्वर का अंश है। इसी कारण उसे आदर सम्मान की इच्छा जागृत होती है, इसलिए यदि आप आदर चाहते हैं तो आदर बोइए। क्योंकि आदरणीय वही होते है, जो दूसरों को आदर देते हैं।
-धन्यवाद
मित्रो: समाज में जितनी भी प्रतिकूलताएं व प्रकृति में विकृतियां हैं, उन सबका मूल कारण संयम का न होना है। ज्यादा से ज्यादा पाने की इच्छा ने असंतुलन को जन्म दिया है। इसका एकमात्र समाधान है कि संयमित जीवन जिया जाए।
जैसा कि मिट्टी का घड़ा आकाश की ओर पीठ, धरती की ओर मुख करके पड़ा रहे तो चाहे कितनी भी वर्षा हो जाए, वह घड़ा नहीं भरेगा। उसी प्रकार क्रोध कामना की कोख से उपजता है। यदि कोई कामना अधूरी रहे तो व्यक्ति आपा खो बैठता है। इसलिए मनुष्य को जीवन में संतुलन बनाए रखना बहुत आवश्यक है।
इसलिए मनुष्य आदर के प्रति अत्यधिक आसक्त होता है। वह सदैव आदर चाहता है। इसका कारण यह है कि उसके भीतर ईश्वर का अंश है। इसी कारण उसे आदर सम्मान की इच्छा जागृत होती है, इसलिए यदि आप आदर चाहते हैं तो आदर बोइए। क्योंकि आदरणीय वही होते है, जो दूसरों को आदर देते हैं।
-धन्यवाद
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